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जयाचार्य कहते हैं कि रु घिर बोर शुभ दोनों के मिलने से उत्कृष्ट नौ लाख गर्मज जो व उत्पन्न होते हैं । अन्त में उन्होंने कहा कि बहुश्रुत कहे वह सत्य है ।'
मछली आदि की योनि में र भार संभोग से ही २ लाख से लेकर ६ लाख तक जो व निष्पन्न हो जाते है तथा मछली एक ही भव में नौ लाख जो वों को उत्पन्न कर सती है । इतने जो व उत्पन्न होने पर भी निष्पन्न न होने का कारण बताते हैं हुए महावीर कहते हैं कि जैसे कई भरी नलिका में कोई तप्त शलाका डाले तो वह नष्ट हो जाती है, वसे ही संभोग से योनित जीव नष्ट हो जाते है ।
गौतम महावीर से जिज्ञासा करते हैं कि रक हो भव में एक पुत्र के कितने पिता हो सकते हैं? महावीर ने कहा-- एक ही पुत्र एक, दो, ती न यावत् नौ सौ पिताओं का पुत्र हो सता है । इसका स्पष्टीकरण करते हुए टीकाकार कहते है कि मानुषी या गाय बादि की योनि १२ मुह तक सचित रहती है । कोई दृढ़ संहनन वाला कामातुर स्त्री या गाय १२ मुह के भीतर ६०० पुरुषों से संयोग , करें, तो उसके गर्म से जो पुत्रउत्पन्न होगा, वह नौ सौ पिताबों का पुत्र होगा।
देवतावों के शक तो होता है लेकिन वकिय शरार होने के कारण वह गर्माधान का हेतु नहीं बनता । श्रुति परम्परा से सुना जाता है कि मानवी और देवता का संयोग होने से गर्भ केवल सात मास तक रहता है, उसके बाद नष्ट हो जाता है, किन्तु पदिक साहित्य में कf RT जन्म सूर्य के संयोग से माना जाता है तथा देवाग नामों की गर्मधारण का उल्लेख मिलता है । जैसे- मेनका से शकुन्तला की उत्पचि हुई । ऐसे बोर मी अने+उदाहरण मिलते हैं। ...
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१- मावती जोड़, पृ०२५४ २- मावती, शE 1- वही, शर
- तंदुलवैचारिक प्रकी णक, १५ .
व भगवती, ५- मटी, पृ० १३४-१३५