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गर्भ का उत्पति स्थान- योनि--
गर्भ के उत्पत्ति-स्थान को योनि कहते हैं । ठाणे सूत्र में योनि तो न प्रकार की बतलाई है-१
१- कूर्मोन्न. -- कार के समान उन्नत । इसमें अर्हत् चश्वतों जैसे उत्तम पुरुष उत्पन्न होते हैं ।
२- शंखावत-- शंख के समान आवर्त वाली । इस योनि में अन जो व उत्पन्न होते हैं लेकिन निष्पन्न नहीं होते । अर्थात् एसयोनि में बच्चा पैदा करने की योग्यता नहीं होती।
३- वंशी पत्रिका-- बांस को जाली के पत्रों के आकार वाली । यह प्राय : सामान्य स्त्रियों के होती है तथा इसमें सामान्य व्यक्ति जन्म लेते हैं ।
इसके अतिरिक्त सभी प्राणियों की अपेक्षा से भी योनि के नौ भेद किये गये है ।२ ओता भेद से अण्डन, पोतज, जरायुज, संस्वेदज, सम्मुछिम और उद्भिज आदि बाठ योनियां होती हैं। इनमें गर्भस्थ जीव के बल अण्डा, पोतज और जरायुज । न ता न योनियों में हो जन्म लेते है ।४ ।
तंदुलपचार प्रकाण में योनि की रचना का उल्लेख मिलता है । स्त्री की नाभि के नीचे फूल की ईडी के समान आकार वाली दो नाझ्यिा होती हैं । उन दोनों नाटियों के निचले भाग में योनि होती है । योनि का मुख नोचे होता है तथा वाकार तलवार को स्यान के समान होता है । ५
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१- ठाण, ३११०३, प्रज्ञापना : २- ठाण, ३।१००-१०२ ३- वही, ८३
४- तत्वार्थ सुत्र, २६ ५- तंदुलवैचारिक प्रकीणक, गा० ६.