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जावेगा। उक्त ग्रन्थ का (हिन्दी अनुवाद सहित) प्रकाशन कार्य चल रहा है।
दीक्षित जीवन काल के २० वर्षों में आपने हजारों मील की पद यात्रा करके अनेक तीर्थों की वन्दना करते हुये भगवान महावीर के संदेशों को जन-जन में पहुंचाने का पुरुषार्थ किया। वि. सं. २०१६ में तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी की यात्रा हेतु आप ८ प्रायिकाओं एवं क्षल्लिका को साथ में लेकर दक्षिण भारत का भ्रमण करते हुये कलकत्ता, हैदराबाद, श्रवणबेलगोल, सोलापुर एवं मनावद जैसे प्रमुख नगरों में चातुर्मास करती हुई पुनः वि. सं. २०२५ में पुनः प्राचार्य संघ में पधारी । इन चातुमामों में आपके द्वारा अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हुई। अनेकों स्थानों पर सार्वजनिक सभागों में उपदेश देकर जैन धर्म का महान उद्योत किया।
गत अजमेर चातुर्मास के पश्चात् प्राद्य गुरु आ. रत्न श्री देशभुषण जी महाराज के दर्शनार्थ एवं भगवान महावीर के २५००व निर्वाणोत्सव को सफल बनाने के लिये ही भारत की राजधानी दिल्ली में समंघ आपका प्रथम पदार्पण हुया है।
दिल्ली आगमन में पूर्व प्रापकी ही पुनीत प्रेरणा से ब्यावर (राज.) की जैन समाज ने पंचायती न सया में रंग-बिरंगी बिजली एवं नदी, फव्वारों की आभा से युक्त बहुत ही आकर्षक (जन भू-लोक की व्यवस्था को दर्शाने वाली) जम्बूद्वीप को रचना बनाने का निश्चय किया है जिसका निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। लगभग आधी से अधिक रचना तयार हो चुकी है।
प्रापकी यह उत्कट भावना है कि भगवान महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में विशाल खुले