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होकर सरस फलों को प्रदान कर रहा है। आज निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि यदि मोहिनी देवी जैसी महान् धर्मनिष्ठ माता न होती तो परम विदुषी ज्ञानमती माताजी का वरदहस्त हम लोगों को प्राप्त नहीं होता और यदि पू० माता ज्ञानमती जी नहीं होती तो अनेकानेक स्त्री-पुरुषों को धर्म मार्ग में प्रवृत्त कराने का श्रेय किसको होता? ___ आप “गर्भाधान क्रियान्यूनो पितरौ हि गुरुणाम्" वाली उक्ति को चरितार्थ करने वाली ऐसो जगतपूज्यमाता हैं जिन्होंने अपने प्राश्रित शिष्य वर्ग को हर तरह से योग्य बनाकर अपने समकक्ष एवं अपने से पूज्यपद पर प्रासीन कराया है। आपने निकट रहने वाले छात्र-छात्राओं को परम आत्मीयता से ठोस शास्त्राध्ययन कराकर परीक्षाएँ दिलवाकर शास्त्री, न्यायतीर्थ प्रादि उपाधियों से विभूषित कराया है उन्हीं में से एक मैं (लेखक) भी हूँ।
आपका ज्ञान प्रत्येक विषय में बहुत ही बढ़ा-चढ़ा है । न्याय, व्याकरण, छंद, अलंकार, सिद्धान्तादि सर्वाङ्गीण विषयों पर पापका विशेष प्रभुत्व है । हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत, कन्नड़, एवं मराठी भाषा पर भी आप अच्छा अधिकार रखती हैं। पापने भक्ति एवं स्तुति के माध्यम से हिन्दी, संस्कृत एवं कन्नड़ में कई रचनाएं निर्मित को हैं जो समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं । प्रतिवर्ष प्राप कई नवीन रचनाओं का सृजन करती
आपने दो वर्ष पूर्व ही न्याय के महान् ग्रंथराज "प्रष्टसहस्त्री" का हिन्दी अनुवाद करके जैन न्याय के मर्म को समझने में सुगमता प्रदान की है जो कि पावाल गोपाल के लिये उपयोगी हो