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छंद, अलंकार, साहित्य आदि विषयों का गंभीरता से अध्ययन कर गतवर्ष में न्याय प्रथमा एवं शास्त्री की परीक्षा देकर प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त कर पारितोषिक प्राप्त किया। इस वर्ष न्यायतीर्थ की तैयारी कर रही हैं। ११ वर्ष की उम्र में तीर्थ की परीक्षा देने वाली कु० त्रिशला प्रथम विद्यार्थी होगी। यह सब माताजी के अथक परिश्रम का ही फल है । ____ जहाँ पुत्र-पुत्रियों ने त्याग धर्म को अपनाया, वहां माता भी पीछे नहीं रहीं । धर्म-परायण माता ने ४ पुत्र रत्न एवं ह कन्या रत्नों को जन्म देकर नित्य प्रति धर्मार्जन करते हुए सन्तानों को सुसंस्कारित कर योग्य बनाया एवं स्वयं न्यागमार्ग पर चलते हुए क्रमशः दुसरी, तीमरी एवं पांचवी प्रतिमा का पालन करते हये पति मेवा में संलग्न रहकर महान् पुण्य मंचय किया। वि० सं० २०२६ में पतिदेव की समाधि के ८ माह उपरांत सप्तम् प्रतिमा धारण कर लो किन्तु इतने पर भी आपको मनोप नहीं हुआ। अन्ततोगत्वा (मुपुत्री) पू० प्रा० श्री ज्ञानमतीजी के मामिक सद्वांध से प्रेरित होकर वि० सं० २०२८ में मगसिर कृष्णा ३ को अजमेर (राज.) में प्रा० श्री धर्ममागरजी महाराज में यायिका दीक्षा धारण कर 'रत्नों की ग्वान' माता मोहिनी देवी ने “रत्नमती" नाम प्राप्त किया।
"माता रत्नमतोजी' की सभी संताने धर्मनिष्ठ हैं जिनका परिचय इस प्रकार है
सुपुत्री-श्री मैना देवी-पू० प्रायिका श्री ज्ञानमती जी सुपुत्र-श्री कैलाशचंदजी-विवाहित-चांदी सोने का व्यापार , , प्रकाशचंद जी , कपड़े का व्यापार
,, सुभाषचंद जी , , , , , रवीन्द्र कुमार-बालब्रह्मचारी , ,