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प्रायिका श्री श्रेष्ठमती जी, पू. आर्यिका श्री यशोमती जी एवं पू. क्षु. श्री मनोवतीजी प्रादि हैं।
पू. माताजी के जीवन की एक प्रमुख विशेषता यह रही है कि उन्होंने न ही केवल अन्य लोगों में वैराग्य की भावना जागृत कर त्यागी बनाया और न मात्र घर के ही सदस्यों को त्याग मार्ग में लगाया अपितु समान रूप से दोनों पक्षों को प्रेरित किया।
आपकी एक लघु सहोदरा पू. प्रायिका श्री अभयमती जी आत्म-कल्याण के पथ पर अग्रसर हैं। जिस लघु भ्राता श्री रवीन्द्र कुमार को प्राप २ वर्ष की अवस्था में एवं लघु सहोदरा कु० मालती को २१ दिन की अवस्था में रोते-बिलखते हुये छोड़कर घर से निकल आई थीं, उन्होंने भी योग्य अवस्था धारण कर आपके ही मार्ग का अनुसरण किया। कु० मालती ने वि० सं० २०२६ में आसोज शुक्ला १० (दशहरे) के दिन एवं श्री रवीन्द्र कुमार 'शास्त्री बी० ए०' ने बैसाख कृष्णा ७ वि० सं० २०२६ को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर यह दिखा दिया कि अभी भी चतुर्थकाल के समान एक ही परिवार से एक ही माता के उदर से जन्म लेने वाले ४ भाई-बहिन अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत को (कौटुम्बिक परेशानियों मे नहीं अपितु धर्मभावना से प्रेरित होकर एवं प्रात्मकल्याण की भावना से अोतप्रोत होकर) धारण करने वाला "प्रादर्श परिवार" टिकंतनगर में विद्यमान है।
इसी प्रादर्श परिवार की कुमारी माधुरी एवं कु० त्रिशला की भी धर्म में तीन रुचि है । लौकिक अध्ययन आवश्यकतानुसार हो जाने से संघ में पू० माताजी के पास रहकर बड़ी ही तन्मयता से धार्मिक ज्ञान को प्राप्त कर रही हैं। न्याय, व्याकरण,