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इन शब्दों के साथ में पुस्तक निर्माता के ज्ञान विज्ञान एवं परिश्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं और पूज्या ज्ञानमती माताजी एवं जिनमतीजी माताजी के प्रति विशेषश्रद्धा रखता हुमा इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखकर अपना अहोभाग्य समझता हूं।
गलात्रचन्द छाबडा जनदर्शनाचार्य
ग्रत्यक्ष धी दि. जैन संस्कृत कालेज,
जयपुर