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जन ज्योतिलोक
७६ __इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि-साधारण मनुष्य को भी थोड़ासा ही घूम लेने पर आंखों में घूमनी आने लगती है, कभी २ खण्ड देश में अत्यल्प भूकम्प आने पर भी शरीर में कपकपी, मस्तक में भ्रांति होने लग जाती है। तो यदि डाक गाड़ी के वेग से भी अधिक वेग रूप पृथ्वी की चाल मानी जायेगी, तो ऐसी दशा में मस्तक, शरीर, पुराने गृह, कूपजल आदि की क्या व्यवस्था होगी।
बुद्धिमान स्वयं इस बात पर विचार कर सकते हैं।
सूर्य-चन्द्र के बिंब की सही संख्या का
स्पष्टीकरण सर्वत्र ज्योतिर्लोक का प्रतिपादन करने वाले शास्त्र तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार, लोकविभाग, श्लोकवार्तिक, गजवातिक, आदि ग्रन्थों में सूर्य के विमान १६ योजन व्याम वाले एवं इससे प्राधे ३४ योजन की मोटाई के हैं और चन्द्र विमान १६ योजन व्यास वाले एवं १६ योजन की मोटाई वाले हैं।
परन्तु राजवार्तिक ग्रन्थ जो कि ज्ञानपीठ से प्रकाशित है उसके हिन्दी टीकाकार प्रोफेसर महेन्द्रकुमारजी ने उसमें हिन्दी में ऐसा लिख दिया है कि-सूर्य के विमान की लम्बाई ४८६० योजन है तथा चौड़ाई २४६० योजन है। उसी प्रकार चन्द्र के विमान की लम्बाई ५६६० योजन है और चौड़ाई २८४ योजन है । यह नितान्त गलत है।