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कि हिन्दू आदि से अधिक धनी मैनियों को क्षति इस कारण से भी कुछ कम नहीं है। पुरुयों की भाँति धनवान न होते हुए भी या व्यर्थ बातों में लोपस्थ्य के निकाले हो हुई है। औरत ओर भी धनहीन भा
द
गृहस्थी के दैनिक भोकर ऊपर से कन्यायों के विचारों का मार हैं। इन कारणों से जीवन
हो जाता है। यही जा है कि लगाने क्त्या को भी चेने पर
को
से
है। समाज में जा
ज
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नाक रखने के लिये जो व्यर्थ
ल
जाने
किया जारहा है वह समाज को बिना as धनाय ठिकाने कहलाते थे गए हैं। अपना बडप्पन स्थिराने के लिये रखने पड़ते है परन्तु भीतर ही भीतर शिक्षा स्वास्थ्य श्रादि बानोंमें कट्टी के ने लगायी बातोंमें विशेष खर्च करते है । यह पूर्व कोर्नियाभिमान मुरु धर्म के नाम पर भी अनर्थ कर रहा है। युगने मन्दिरों को सभाल नहीं, नए बनाते है। मन्दिरों और अन्य धर्मानों को अन्य लोग हड़प करते जॉय. इसको कुछ पर नहीं है दयात्रा और जीवन वार बसल्यॉग के निमित्त म् परन्तु वैसे तो गाड़ी एक गृहस्थ जैनीका कुटुन न कुटुम्ब दखिता के हदयाहो कुल सहरत हो तो भी ग नहीं आयगी । वहाँ वात्सल्यॉग रफूचक्कर हो जाय। शान को बच्चों के लिये भोजन नहो परन्तु दना ज़रूर करेंगे।
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