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जैन जगती Paneeta
अतीत खण्ड &
ये श्वान-विग्रह नष्ट कर मत-भेद को हम हर सकेंत्रय काल में संभव नहीं, यह काल शायद कर सकें। फिर आज को सरकार से मत-भेद पोषित हो रहे; ये धर्म-रण हा! बदल कर सब राजरण हैं हो रहे ।। ३५४ ।। ___अन्तरभेद व पतनमतभेद होता आदि से हर ठौर जग में आ रहा; चढ़ने उतरने की कला सब है यही सिखला रहा। इससे उतरने की कला हम जैनियों ने सीख ली; पर हाय ! चढ़ने की कला नहिं दृष्टि भर भी लेख ली ।। ३५५ ।। जिन धर्म पहिले एक था, फिर खण्ड इसके दो हुये; फिर वे दिगंवर ३२५ श्वेत अंबर ३२६ नामसे मंडित हये। चत्वार दल में फिर दिगंबर मत विभाजित हो गया; यह श्वेत अम्बर भी अहो ! दो खण्ड होकर गिर गया। ३५६ ॥ संतोप पर इतनी दशा से काल क्यों करने लगा ! जो था क्षुधित चिरकाल से, अब क्यों क्षुधित रहने लगा! बावीस २७ चौरासी३२८ दलों में श्वेत अम्बर छट गया; बावीस दल में पंथ तेरह २९ फिर अलग ही हो गया ।। ३५७ ।। तब विप्र, क्षत्री, शूद्र इसको छोड़ कर जाने लगे; वे विप्र इस पर उलट कर तब वार फिर करने लगे। जब है कलह निज देह में, अवयव भला क्यों खिल सकें; निर्जल हुये अघ-पंक में शुचि पद्म कैसे खिल सकें ? ३५८ ॥