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जैन जगती
* अतीत खण्ड
परिवार सह चेटक यदि जिन वीर की सेवा करें; फिर आत्माएँ सप्त उनकी क्यों न जिनवर को वरें ? उनकी यहाँ पर आत्माओं का न वर्णन हो सके; यदि वर्ण व भर सके, यह वर्ण्य मुझ से हो सके ॥ ३३४ ॥
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वह चन्द्रगुप्त नृपेन्द्र जो इतिहास में विख्यात हैं; यश-कीर्ति जिनकी आज भी संसार में प्रख्यात है । जिसको अधूरे विज्ञजन थे बौद्ध धर्मी कह रहे; विद्वान अब नृप चन्द्र को सब जैन हैं बतला रहे ।। ३३५ ।।
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वीतभय ३०९
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साकेतपुर के कुछ भवन खण्डित शेप हैं; कुछ राजगृह चम्पापुरी ३१२ में खण्ड विगलित शेष हैं । उज्जैन ३ १३, मिथिला ३ १४, पटन ३१५ के शिल पत्र तो तुम देख लो; वर्णन हमारा दे रही आवस्ति ३१६, इसको लेख लो ॥ ३३६ ॥ गिरनार ३१७ १, शत्रुञ्जय ३१८ कहो ये तीर्थ कब से हैं बने, सम्मेत ३१९ गिरिवर का कहो वर्णन कहीं तुमसे बने ? क्या चीज हैं सरवर सुरर्शन २० ? नाम शायद ही सुना; अर्थात् यों जिन धर्म भारतवर्ष में व्यापक बना ।। ३३७ ||
पंजाब, उत्कल, मध्यभारत, मगध, कौशल, अन में सौराष्ट्र, राजस्थान, काशी, दक्षिणाशा बङ्ग में । अर्थात् आर्यावर्त में, सब थल अनार्यावर्त में - जिन धर्म प्रसारित हो चुका था कोण, आशा, वर्त में ॥ ३३८ ॥
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