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जैन जगती
अतीत खण्ड
चिकित्सालयनिःशुल्क होती है चिकित्सा, शुल्क कुछ भी है नहीं, देखो मनुज, पशु आदि सब की है चिकित्सा हो रही। यति-कुल हमारा आज भी निःशुल्क औषध दे रहा; वह भूत भारतवर्ष की कुछ कुछ झलक झलका रहा ।। ३०६ ।।
ग्राम-नगरहैं ग्राम, पुर सारे सहोदर, प्रेममय व्यवहार है; हर एक का दुख हो रहा सब के लिये दुख भार है। सब के भरण-पोषण निमित ये कृषक करते काम हैं; हैं अस्थियाँ तक घिस गई, कुछ शेष तन पर चाम है ॥३१०॥ सब वैश्य साहूकार हैं, वर वीर क्षत्री हैं सभी; हैं ऊर्ध्वरेता विप्रगण, हैं शूद्र जन-सेवी सभी । सब कर्म अपने कर रहे, नहिं भेद है, नहि द्वष है; धर्मान्ध छूताछूत की दुर्गंध का नहिं लेश है ।। ३११ ।। सब में परस्पर पाणि-पीड़न प्रेमपूर्वक हो रहे; योग्या सुता वर योग्य को सर्वत्र सब हैं दे रहे । योग्या सुता वर मूर्ख को होती न स्वीकृत आज है ! नहिं विप्र का भी विप्र में सम्बन्ध होता आज है ! ।। ३१२ ।। सब ग्राम-पुर धन-धान्य-भृत हैं, स्वास्थ्य-प्रद जलवायु है; भूमी अधिक है उर्वरा, सब नारि नर दीर्घायु हैं। इनमें न ऋण की रीति है, कहते किसे फिर सूद हैं; उपकरण जीवन के सभी हर ग्राम में मौजूद हैं ।। ३१३॥