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जैन जगती अतीत खण्ड हम जैनियों ने क्या किया इतिहास-चेता जानते; सौराष्ट्र राजस्थान की वे स्नायु हमको मानते। जयपुर, उदयपुर, जोधपुर गुण आज किसके गा रहे ? यदि हम न होते, आज फिर ये राज्य होने से रहे ।। २५४ ॥
हमारी आध्यात्मिकता कैसा हमारा आत्मबल था, विश्व में वह था नया; रविदेव का भी रुक गया रथ, मेरु मग से हट गया २८२ । राजर्षि मुनिपति मदन२८3 अपने प्राण वल्लभ दे चुके मुनिराज खंदक२८४ भी त्वचा निर्दोष थे खिंचवा चुके ।। २५५ ।। हम कर्म में अति शूर थे, हम धर्म में रण-धीर थे; हमको न माया मोह था, हम त्याग में वरवीर थे । विपरीत चलना धर्म के हमको न भाता था कभी%B दिन को निशा कहना नहीं था भीति बस आता कभी ।। २५६ ॥ मुनिवृन्द के चारों तरफ वह अग्नि कैसी थी लगी२८५ ! उस अग्नि जैसी अग्नि जग में क्या कहीं अब तक लगी? हमने बिगड़ कर भी किसी को शाप अब तक नहिं दिया; अपकार के प्रतिकार में उपकार ही हमने किया ॥ २५७ ।। मुनिराज करने क्षेत्र में परिक्षेप हाला को गये ८६; कुछ सोचकर फिर आप ही बस पान उसका कर गये । मुनिराज ऐसे हो गये किस धर्म में, किस देश में ? श्राध्यात्म-पद तो साध्य है जिनराज के ही वेष में ॥ २५८ ।।