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जैन जगती PREGORRESO
* अतीत खएड 8
हमने न अत्याचार यों था दीन दलितों पर किया; पापीजनों को भी न हमने विश्व में बढ़ने दिया। उपदेश को हम दण्ड-नय से अधिक हितकर मानते; सद्मार्ग लाने की कला हम बहुत अच्छी जानते ।। २३४ ॥
हमारी वीरता हम आप जाकर के किसी से कर रहे नहिं युद्ध थे; श्रोणित बहाकर दीन का पथ यों न करते रुद्ध थे। थे चक्रवर्ती भूप, पर कुछ गर्व हमको था नहीं; सुरलोक वैभव प्राप्त कर होते बधिर हम थे नहीं ॥ २३५ ।। गिरिनाथ भी था जन्मते ही वीर विभु के हिल गया२३,
आसन स्वयं था इन्द्र का कंपित उसी क्षण हो गया। इस भाँति के अगणित हमारे वीर नरपति हो गये; यदि युद्ध उनमें छिड़ गया, थे एक जल-थल हो गये ।। २३६ ।। हमने समर अगणित किये, पर आप लड़ने नहिं गये; उन्मुख हुए हम भूपको पहिले मनाने को गये। उपयोग चारों नीतियों का अन्त तक हमने किया; माना न जब अरि ने कथन, होकर विवश फिर रण किया ।।२३७॥ सजन, महाशय, सहृदय रिपु रुष्ट होकर आगया; वह बल हमारा तोलकर भूला हुआ-सा गृह गया । था बज्र-सा यदि, कुंठ-हृदयी, काल-सा विकराल था; लख वह हमारा आत्म-बल होता तरलतत्काल था ।। २३८ ।।