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® जैन जगती.. avacreteccg
& अतीत खण्ड
२२२ २२३ २२४ मथुरा, बनारस, ओरिसा की वह न शोभा है कहीं, पावापुरी२२५, अमरावती२२६ भी रम्य वैसी हैं नहीं; पर चिह्न इनमें शिल्प के जो भी पुराने शेप हैं। हा ! गत हुई उस भारती के अंश ये अवशेप हैं । २०४ ॥ यह एक प्रस्तर का बना चौबीस गज का चैत्य है२२७; यह कर-कला तो है नहीं, देवी-कला का कृत्य है । इससे बड़ा संसार में है विम्ब कोई भी नहीं; अनुकूल इसके एक दिन जिन-शिल्प की सीमा रही ।। २०५ ।। हा ! शे गये भूगर्भ में लाखों नमूने शिल्प के जब भी मिलेंग सिद्ध होंगे पूर्व अगणित कल्प के। कुछ खो गये, कुछ दूसरों ने छीन हमसे भी लिये; कुछ यवन २८ अत्याचारियों ने नष्ट, खण्डित कर दिये ।। २०६॥
कैसी कलामय थी मला वह शिल्प-कौशल को कला ! कैसे कलायुत हाथ होंगे शिल्प-शास्त्री के भला ! जब इंच भरकी कोरणी में माह लगता था अहो! फिर वस्तु होगी मूल्य में कितनी भला यह तो कहो ?।। २०७ ॥ अायाग २९पट के खण्ड तुम मथुरापुरी में लेख लो; कर दो तुम्हें भी हैं मिले, कर की कला तो पेख लो। वे मनुज थे या और कुछ; या देव-माया थी विभो ! उनके करों में थी कला या थे कलामय कर प्रभो!॥२०॥
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