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जैन जगती
• अतीतखण्ड .
स्वच्छन्द थे, स्वाधीन थे, निर्मोह थे, निष्काम थे; गतराग थे, गतद्वेष थे, शुचि शील-संयम-धाम थे। भगवान के भगवान थे, वे नाथ के भी नाथ थे; तारण-तरण थे, सिद्ध थे, सर्वज्ञ थे, सुर-नाथ थे ॥५४॥ सुत-चीर कर भी था जिन्होंने धर्म का पालन किया२% रह कर बुभुक्षित आपने मुनिराज को भोजन दिया२८ । था श्येन को श्रामिष दिया यों काट कर निज देह से२९, आख्यान ऐसे नरवरों के गूंजते सुर-गेह मे ॥ ५५ ।। आजन्म जीवन में कभी भी झूठ था बोला नहीं; चण्डाल के घर बिक गये, पर सत्य-व्रत तोड़ा नहीं । धमार्थ तजते प्राण जिनको निमिष था लगता नहीं; ऐसे मनुज कोई बतावे मिल सकें जो यदि कहीं ।। ५६ ॥ नरसिंह थे, नरश्रेष्ठ थे, नरदीप थे, नरनाथ थे; भूनाथ थे, सुरनाथ थे, रघु-कुल-मणी रघुनाथ थे३१ । वन-वास वत्सर चार दश का राज्य तज किसने किया? आज्ञा पिता की मान यों किसने शिविर वन में दिया ।। ५७ ॥
बलराम, लक्ष्मण, भरत, अर्जुन, भीम भ्राता होगये; न्यायी युधिष्ठिर३७ राम से भी ज्येष्ठ भ्राता हो गये। है कौन ऐसा देश जो उपमान इनका दे सके ? स्थ धर्म के सद्तेज से क्या बात जो भू छू सके ।। ५८ ।।