________________
* जैन जगती *
* अतीत खण्ड
विद्या- कला-कौशल सभी का यह प्रथम गुरुराज है; इसके सहारे विश्व के होते रहे जग-काज हैं । जो स्वर्ग भी गुण गा रहा हो कौनसा आश्चर्य है ? बस आर्य भूमी - आर्य-भूमी - आर्य भूमी आर्य है ॥ १६ ॥ आर्यावर्त-माहात्म्य
२
3
О
जब अन्य जनपद के निवासी थे दिगंबर घूमते; घनघोर जंगल में विचरते, फूल, पल्लव चूमते । भार्या, सुता में भी न वे जब भेद थे कुछ जानते; उस काल, दक्षिण काल में मनु-धर्म हम थे मानते ॥ २० ॥ ऋषभादि जिनवर, विमल कुलकर, राम रावण" हो चुके; भूमी - विलोड़न ', लंक -दाहन, देव-रण' थे हो चुके । श्रुति-शास्त्र' ' रचना हो चुकी थी, यम, नियम थे बन चुके; ये तब जगे जब धर्मके त्रय मत हमारे लड़ चुके ॥ २१ ॥ उत्कीर्ण होकर मत-मतान्तर विश्वभर में छा गये; जो सो रहे थे जग गये, अब देव दानव बन गये । कानन अगम सब कट गये, हर ठौर उपवन हो गये; आखेट कर जो पेट भरते थे कृषक वे हो गये || २२ ॥ ये कर्म हैं उस काल के सब जबकि हम गिरने लगे; हम आप गिरते जा रहे थे, सोचने पर क्यों लगे । जिस वेग से आगे बढ़े थे शतगुणे गिर कर पड़े; विद्या- कला-कौशल सभी के चक्र उल्टे चल पड़े ॥ २३ ॥
* पूर्वाद्ध ।