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जैन जगती, GReal
अतीत खण्ड
हे आर्य ! जागो आज तुम, दुर्दैव तुम पर भा गया; तुम मोह-तंद्रा में पड़े, अवसर उसे है मिल गया। चालीस कोटि वीर हो, दुर्दैव से जमकर लड़ो; हो बात केवल एक ही–बस मारदो या मर पड़ो। १४ ।। पूर्वज तुम्हारे कौन थे, क्या बैठ कर सोचा कभी ? यह प्रश्न जीवन-मंत्र है, मिल कर सभी सोचो अभी। भूले हुये हैं आज हम निज देश के अभिमान को; विज्ञान को, श्रुतिज्ञान को, सद्ज्ञान को, सम्मान को ॥१५॥ अपवर्ग भारत था कभी ! अब हा ! नरक से है बुरा; अशरण-शरण जो था कभी ! हा! आज चरणों में गिरा। प्रस्ताव यदि जन-ऐक्यता का एक मत से पास हो; यह एक दम स्वाधीन हो, निष्णात हो, मधुमास हो ॥ १६ ॥
आर्य-भूमी हिमशैल-माला कोट-सी, जिसके चतुर्दिक छा रहो; जिसके निदिक जल-राशि उर्मिल पर्यवेक्षण कर रही। गिरिराज राजेश्वर कहो, क्या विश्व में कम ख्यात है ? जिसके सुयश के गान घर घर हो रहे दिन-रात हैं ॥ १७॥ इन गिरिवरों से निकल लाखों निम्नगायें बह रहीं; जो देव भारत को हमारे देव-उपवन कर रहीं। फिर रन-गर्भा भारती के क्यों न नर नर-रत्न हों? स्वर्गीय जीवन के यहाँ उपकरण जब उपलब्ध हों।॥१८॥