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* जैन जगती *.
* परिशिष्ट
भरत को मिला तो भरत ने उस आदमी को बुलाया और उस आदमी के हाथ में दही से भरा हुआ पात्र देकर कहा, "जाश्रो तुम समस्त शहर में यह पात्र अपने हाथ में लिये हुए भ्रमण करके आओ; लेकिन यह ध्यान रखना कि एक बूंद भी अगर दही का नीचे गिर पड़ा तो प्राणग्राहक तुम्हारा शिर वहीं पर धड़ से अलग कर देंगे ।"
जब वह आदमी समस्त नगर में भ्रमण करके लौटकर भरत के पास आया तो भरत ने देखा कि दही में से एक बूंद भी नहीं गिर पाई है। भरत ने उसे पूछा, 'भाई, तुमने नगर में क्या देखा और क्या सुना ?'
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उस पुरुष ने उत्तर दिया, 'न मैंने कोई पुरुष या वस्तु देखी और न मैंने कुछ सुना ही । मेरी तो सब हो इन्द्रियें इसी पात्र पर लगी हुई थी' । तब भरत ने उसे समझाया और कहा, 'भाई मैं इस दहीपात्र के समान मोक्ष को देखता हुआ इस असार संसार के मध्य रहता हूँ ।'
२३६ - जब २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था उसी समय सुमेरुपर्वत हिल उठा और इन्द्र का सिंहासन भी डोल उठा । देखो त्रि० श० पु० चरित्र (गु० भा) भाग १० वाँ । २३७ - भरत चक्रवर्ती और बाहुबल का द्वन्द-रण विश्रुत है। ये दोनों भगवान् ऋषभदेव के पुत्र थे। दोनों में राज्याधिकार के लिये विग्रह हो गया। जब दोनों ओर के विशाल जन-सैन्य राङ्गण में पहुँचे और युद्ध प्रारम्भ होने ही को था कि महामना बाहुबल ने भरत के समक्ष यह प्रस्ताव रक्खा कि राज्य प्राप्ति
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