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जैन जगती PROGRAMMERCari
® परिशिष्ट .
के कारण ही इस जाति के मनुष्य गंधर्व कहलाये। संगीत विद्या का प्रथम प्रचार इसी जाति से हुआ है।
२३२-आस्ट्रेलिया में कुछ ऐसी मूर्तियाँ निकली हैं जिन्हें लोग बौद्ध-मूर्तियाँ कहते हैं। इसमें किसी का दोष नहीं कि वे मूर्तियाँ बौद्ध हैं या जैन । जब तक किसी भी परीक्षक, निरीक्षक को जैन-मूर्तियों के चिन्ह, लक्षण भली भाँति विदित न हों वह तो प्रत्येक ध्यानस्थ एवं कायोत्सर्गस्थ मूर्ति को बौद्ध ही कहेगा। लेकिन अब कोई-कोई लोग यह बात स्वीकार करते हैं कि किसी समय में जैन-धर्म दुनिया के अधिकांश भाग में महात्मा गोतम बुद्ध के पूर्व ही फैला हुआ था। अतः ढाई सहस्र पूर्व की प्रत्येक ऐसी मूर्ति या स्तम्भ निर्विवाद रूप से जैन है।
२३३-यादववंश-भगवान श्रीकृष्ण हमारे ६ वें वासुदेव थे। इनके चचेरे भाई नेमिनाथ २३ वें तीर्थंकर थे और इनके अनुज गजसुकुमाल अन्तकृत केवली थे। छप्पन कोटि यादव भी जैन थे, ऐसा हमारे ग्रंथों में प्रबल प्रमाण मिलता है। [ मेरी समझ में यहाँ कोटि का अर्थ कोई संख्या विशेष से न होकर गोत्र या शाखा से है।
२३४-देखो नं० २। विशेष के लिये देखो त्रि० श० पु. चरित्र (गु० भा ) भाग १
२३५-~भरत-यह भगवान ऋषभदेव का पुत्र था और प्रथम चक्रवर्ती हुआ है। यह राज-कार्य करता हुआ भी विरतात्मा था । एक समय किसी ने यह शंका की कि भरत चक्रवर्ती होकर कैसे विरक्तात्मा रह सकता है। जब इस बात का पता
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