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® जैन जगती, • परिशिष्ट .
८६-आचार्य अमितिगति-ये आचार्य भी बड़े विद्वान थे। इन्होंने 'सुभाषितरत्नसंदोह', 'धर्मपरीक्षा' आदि कितने ही सुन्दर ग्रन्थ लिखे हैं। ___१०-श्री हेमचन्द्राचार्य-ये सौराष्ट्रपति कुमारपाल के गुरु
थे। असम विद्वान थे। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत में सैकड़ों प्रन्थ लिखे । वैयाकरण अद्वितीय थे। 'हेमचन्द्रव्याकरण' इनका सर्वाधिक प्रसिद्ध है । इनकी लेखनी की शक्ति को समस्त साहित्यसंसार स्वीकार करता है । इन्होंने साढ़े तीन करोड़ से भी ऊपर श्लोकों की रचना की है।
६१-सीता-महासती सीता को कौन नहीं जानता । अग्नि'परीक्षा के समय सीता के शील-प्रभाव से अग्नि भी शीतल जल बन गई थी । अग्नि-परीक्षा हो लेने के पश्चात् सीता ने दीक्षा ग्रहण कर ली और चारित्र पालन किया।
१२- द्रोपती-द्रोपती के चीरापकर्षण की कथा सर्वत्र प्रसिद्ध है । उसके शील के प्रभाव से चीर का भी अंत न आया और दुशासन स्वयं लजित एवं थकित होकर बैठ गया।
३-मैना सुन्दरी-यह श्रीपाल कोटोभट की राणी थी। जब मैना का श्रीपाल के साथ प्रणय हुआ था उस समय श्रीपाल कुष्ट रोग से अतिशय पीड़ित था । मैना ने प्रथम दर्शन पर ही श्री सिद्धचक्र की पूजा करके चरणोदक लेकर श्रीपाल पर छिड़का कि श्रीपाल पूर्ववत् रूपजीव हो गया । देखो 'श्रीपालरासों।'
४-शैव्या-रानी शैव्या को तारा भी कहते हैं। राजा इरिश्चन्द्र ने ताग को एक पुरोहित के हाथ बेची थी, लेकिन शैव्या
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