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जैन जगती
महाम् विद्वान थे। प्रसिद्ध भक्ताम्बर-स्तोत्र इन्हीं की रचना है। कहते हैं कि आपने अपनी ४४ (चौमालीस) बेड़िये चौमालीस श्लोकों की रचना करते हुए काटी थीं। ____७७-आर्य सुहस्ति-ये महान तेजस्वी प्राचार्य थे। प्रसिद्ध जैन सम्राट् संप्रति के गुरु थे। ये भूत, भविष्यत, वर्तमान के ज्ञाता थे। ___७८-सम्प्रति-सम्राट अशोक के प्रपौत्र थे। ये दृढ़ जैनधर्मी थे। इन्होंने अपने शासन-काल में सवा लक्ष नूतन जिन मन्दिर बनवाए, सवा क्रोड़ नूतन जिनबिंब करवाये, तेरह सहस्र प्राचीन जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया और सप्त शत दानशालायें बनवाई। देखो 'सम्राट सम्प्रति' नामकी पुस्तक । आज भी सम्राट सम्प्रति के बनवाये हुए कितने ही मन्दिर, स्तूप हजारों संकट सहन करके भी सम्प्रति के नाम को अमर रक्खे हुए हैं।
७६-मानदेवाचार्य-ये परमहंस थे। एक समय तक्षशीला नगरी में भयंकर उपद्रव प्रारम्भ हो गया। आप उस समय नादोलपुर में विराजमान थे। आपने नादोलपुर में 'शान्ति-स्तोत्र' बनाया और उसे तक्षशीला को भेजा । ज्योंहि वहाँ 'शान्ति-स्तोत्र' का पाठ किया गया कि एक दम सारा उपद्रव शान्त हो गया। ___८०-अभयदेवाचार्य-इस नाम के छः प्रसिद्ध आचार्य हो चुके हैं । इन छः में भी अधिक प्रभावक जिनेश्वरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि हैं । आपने ग्यारह अङ्गों की टीकायें लिखी हैं। भाप नागार्जुन के समकालीन थे। ८१-शान्तिसूरि-ये आचार्य धनपाल और सूराचार्य के
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