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1. जैन जगती
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* परिशिष्ट
'आवश्यक लघुवृत्ति' नाम का ग्रन्थ लिखा है । 'दशवैकालिकसूत्र' पर भी टीका लिखी है ।
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६६ - दोणाचार्य - इन्होंने 'ओघनियुक्ति' पर टीका लिखी है। ७० - मल्लवादी आचार्य - इन्होंने पद्म चरित्र (जैन रामायण ) चौबीस हजार श्लोकों में लिखा है । ये विक्रम चतुर्थ शती में विद्यमान थे । भृगुकच्छ में आपने बौद्धाचार्यों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था अतएव आपको 'वादी' पद दिया गया ।
७१ - सूराचार्य - ये महान पfosत थे । इन्होंने प्रसिद्ध भोजराजा की faar - मण्डली को भी दर्शन- शास्त्रार्थ में परास्त किया था ।
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७२ - वीराचार्य - ये भी प्रखर शास्त्र पारंगत थे । इन्होंने अहिलपुर में सिद्धराज की राजसभा में बौद्धाचायों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था ।
७३ -- जिनेश्वरसूरि -- ये महान विद्वान थे । ये ११ वीं शती में हुए हैं। इन्होंने पंचलिंगीप्रकरण, वीरचरित्र, लीलावतीकथा, कथारत्न कोष आदि अनेक ग्रन्थ लिखे हैं ।
७४ - जीवदेव आचार्य -ये महान् प्रभावक साधु थे । इन्होंने देह त्याग करते समय अपने अन्तेवासियों को अपना शिर चूर्णं करने की आज्ञा दी थी। क्यों कि इनको भय था कि कोई योगी इनका शिर लेकर उत्पात मचावेगा ।
७५- दुर्गाचार्य - ये विक्रम सं० ६०० में विद्यमान थे । इन्होंने अगणित धन-द्रव्य को परित्यक्त कर दीक्षा ली थी । ७६ - मानतुरंगाचार्य -- इनका नाम अधिक प्रसिद्ध है । ये
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