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________________ जैन जगती ॐ भविष्यत् खण्ड 8 अवयव तुम्हारे पक गये, यौवन विकच जब हो गया; तब शक्ति,बल,मन चरमतम विकसित तुम्हारा होगया। तम-पक्ष में तुम आज तक बल, शक्ति, मन खोते रहे। शशि-पक्ष में तो क्या कहूँ, बस तुम सदा रोते रहे !! ॥१०॥ उस ओर से इस ओर को बल, शक्ति युवको ! मोड़ दो, आस्वाद इसका भी चखो, कुछ काल को वह छोड़ दो। ये दिवस दुखि या जाति के पल मारते फिर जायगे; बस सजल होते पंक के, पंकज अचिर खिल जायँगे ॥१०६|| संसार-भर की दृष्टि है युवको! तुम्हारे पर लगी; तुम हो जगे जिस भाग में, उस भाग में जागृति जगी। अब ऐक्यता, सौहार्द को तुम भी यहाँ वर्धित करो; इसके लिये तन, मन, वचन सर्वस्व तुम अर्पित करो ॥१०॥ बस आपके उत्थान पर सम्भव सभी उस्थान हैं; होते युवक सर्वत्र ही निज जाति के चिद् प्राण हैं । दायित्व कितना आपका; क्या आपने सोचा कभी ? चाहो, अभी भी सोचलो,-अवकाश है इतना अभी ॥१०८।। चलते तुम्हारे चरण हैं, हैं काम कर भी कर रहे तुम देखते हो आँख से, तुम बात मुंह से कर रहे । फिर भी तुम्हारे में मुझे क्यों प्राण नहिं हैं दोखते ? विज्ञान-युग में शव कहीं चलना नहीं हैं सीखते ? ॥१०॥ १६८
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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