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जैन जगती. sces AccebN
9 भविष्यत् खण्ड
च्यापार कन्या का करो, जिसमें न पड़ता श्रम तुम्हें ! मुद्रा हजारों मिल रही हैं एक कन्या पर तुम्हें ! जिसके सुता है कक्ष में, कर में उसीके शक्ति है ? उसके सुता है कक्ष में; जिसके करों में शक्ति है ।। ६५ ।। विद्या पढ़ो तुम, ज्ञान सीखो, बुद्धि, करसे काम लो; करके रहो उस काम को जो काम उर में धाम लो। कैसे अहो ! धनवान तुम देखू भला बनते नहीं; क्या एक कण के लाख कण निर्धन कृषक करते नहीं ? ॥६६॥ तुम तुच्छतर-सी बात पर हो ग्राहकों से ऐंठते ; तुम एक पाई के लिये पद-त्राण-रण कर बैठते; व्यापार धन्धे आपके फिर किस तरह से बढ़ सके ? घाटा न फिर कैसे रहे ? हम इस तरह जब कर सके ।। ६७ || धन प्राप्त करने की कला जाने कलाकर भी नहीं ; ‘पर भूठ में तुमने कला वह समझ है रक्खी सही। यदि बन्धुओ ! सम्पन्नता अंतिम तुम्हारा ध्येय है ; बल, बुद्धि सत्तम सत्य से पुरुषार्थ करना श्रेय है।।१८ ॥
श्री पूज्य श्रीपूज्य ! यतिपति आप भी आदर्शता धारण करो; सुख-ऐश-चैभव-जाल को पाताल में जाकर धरो। है आगया शैथिल्य जो, उसको भगादो पुरुष-धन ! शुचि शील, संयम,त्यागमय हो आपका तन, मन, वचन ॥६॥