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जैन जगती
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भविष्यत् खण्ड
नेताजनो ! अब जाति-जीवन है तुम्हारे हाथ में; जीवन-मरण-भवितव्यता सब कुछ तुम्हारे हाथ में। यह जाति आशागीर है, तुम आप आशागार हो; तुम यन्त्र कुछ ऐसे करो बस अचिर जात्युद्धार हो !! ॥ ७० ॥
उपदेशक करके दया उपदेशको ! अब ऐक्यता पर जोर दो; बिखरे हुए हैं रत्न मालाके उन्हें फिर जोड़ दो। अपवाद-खंडन-चोट से चक-चूर अब करना नहीं; गिरते हुए पर बन का आघात फिर करना नहीं ।। ७१ ।। हमको जगाने के लिये तुम यत्न उर भरकर करो; तुम अब नहीं पर साम्प्रदायिक रोग को वर्धित करो! सहयोग दो गिरते हुए को फिर उठाने में हमें; उसको लगादो मार्ग में, पथ-भ्रष्ट जो दीखे तुम्हें ॥७२॥
श्रीमन्त श्रीमन्त ! बोलो, कब तलक तुम यों न चेतोगे अभी ? क्या अवदशा में और भी अवशिष्ट देखोगे अभी ? तुम कर्म से, तुम धर्म से हो पतित पूरे हो चुके
आलस्य, विषयाभोग के आवास, अड्डे हो चुके !!!॥७३॥ है अज्ञता तुमको प्रिया सम, विषय-रस निज बन्धु हैं। है रोग तुमको पुत्र सम, कलदार करुणासिन्धु है ! तुम भोग में तो श्वान हो, तुम स्वार्थ में रण-शूर हो! परमार्थ में तुम हो बधिर, अपने लिये तुम सूर हो!!! ॥४॥
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