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1. जैन जगती Book RECENE
* वर्तमान खण्ड,
मुझको तुम्हारी इन नसों में बल नहीं है दीखता; क्या अंत-घड़ियाँ आ गई हैं !-दम निलकता दीखता ! इस मरण से होगी नहीं चिन्ता मुझे किंचित कहीं; क्या लाभ है उस देह से, है प्राण उसमें जब नहीं ? ॥ २३५।।
पर पूर्वजों के नाम पर कालिख कहो क्यों पोत दी ? कौस्तुभ-मणी को हाय ! तुमने पंक में क्यों छोड़ दी ? जीना जिसे-मरना उसे, मरना जिसे-जीना उसे; अवध्वस्त होकर जो मरे, दुर्मीत है मरना उसे ॥ २३६ ।। कायर तुम्हें बकाल, बणिया आज जग है कह रहा ! कुछ बोलने के भी लिये तो तल नहीं है मिल रहा ! तुम में न अब वह तेज है, नहिं शक्ति है असिधार में ! नारी सतायी जा रही है आपकी गृहद्वार में !! ॥ २३७ ।।
नहिं देश में, नहिं राज्य में कुछ पूछ भी है आपकी ! हा! जिधर देखो मिल रही लानत तुम्हें अनमाप की! तुम चोर गुण्डों के लिये हा! आज घर की चीज हो ! वे घुस घरों में मौज करते-मौज को तुम चीज हो! ।। २३८ ॥
तुमको अहिंसा-तत्त्व ने कायर किया यह झूठ है। इसको क्षमा कहना तुम्हारा भी हलाहल झूठ है। इतिहास तुमको पूर्वजों का क्या नहीं कुछ याद है ? बस आतताई पर चलाना वार-जिन्दाबाद है ।। २३६ ॥
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