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जैन जगती RECORRECOct
® अतीत खण्ड
हैं कोर्ट मुनसिफ खुल रहे, होता जहाँ पर न्याय है। तुम लार्ड-परिषद33 तक बढ़ो,यदि हो गया अन्याय है। इस लार्ड-परिषद कोर्ट का हम लाभ कितना ले चुके ! सम्मेत 33८-शेखर के लिये हम हैं वहाँ तक बढ़ चुके ।। ३८६ ॥ है पास में पैसा अगर, सब काम कल कर जायगी; थोड़े दबाने पर बटन के रोशनी लग जायगी। खबरें नये जग की हमें इसकी कृपा से मिल रहीं; अब इस बटन के सामने कुछ देव-माया भी नहीं ।। ३६०॥
इनके कलायें पास में हैं सुर, असुर, अमरेश की; हम देखते हैं नेत्र से कितनी दया है ईश की ! मृत को जिलाना हाथ में इनक अभी आया नहीं; अतिरिक्त इसके और कोई काम बाकी है नहीं ।। ३६१ ।। यह रेल, वायर की कहो है जाल कैसी बिछ रही ! ये अम्बु-थल-नभयान की चालें मनोहर लग रहीं। रसचार का, व्यापार का श्री राम के भी राज्य मेंसाधन नही था इस तरह जैसा मिला इस राज्य में ।। ३६२॥
हैं भूरि संख्यक स्कूल सारे देश भर में खुल रहे। निज स्वामियों के प्रति हमें सद्भाव हैं सिखला रहे । यह भूत छूताछूत का कितना भयंकर यक्ष है; हम तो पराभव पा चुके, अब भागता प्रत्यक्ष है ।। ३६३॥