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मूर्तिपूजकों के पक्ष की परीक्षा और खंडन ।
मूर्तिपूजकों का यह मत है कि तीर्थंकरों की पापाण की मूर्तियां उनको तीर्थंकरों के सद्गुणों की याद दिलाती हैं और उनके __अंत:करणो में उन सद्गुणों का अनुकरण करने की प्रबल __इच्छा उत्पन्न करती हैं । परन्तु उनके आचार व्यवहार पर
इस बात का बहुत कम अमर नजर आता है। प्रतिमाओं
के बहुमूल्य और चमकीले आभूपण, मंदिरों की चकाचौंध ___ कर देने वाली रोशनी, अनेक चित्तार्कपक पदार्थ, मधुर और
हृदयग्राही गान ( जो प्रतिमाओं के सामने गाया जाता है , भडकीले वस्त्र पहने हुए छोटे छोटे वालकों का सुंदर नृत्य और उनके मधुर भजन तथा उनके पैरों के घुघरुओ की मुरीली सनकार, प्रतिमाओं के सामने जलाये हुए घूप की उन्मत्त पारने वाली सुगंध, ये सब बातें भ्रमजाल में फले हुए भत्तो को मुक्ति प्राप्त करने के लिये न तो मोक्षमार्ग पर ले जाती हैं और न उनके हृदय में जैसा कि वे समझते है तीर्थकरों के सदगुणों के अनुकरण करने की इच्छा उत्पन्न करती, हैं किन्तु उनको संसार के क्षाणक मुखों की भूलभुलइयाँ में फैमा देती है।
__ यदि सच पूछा जाय तो इन मूर्तियों और क्रियागंटों पीति सार्थवाही हुई है और इस उद्देश को लेकर ही । ये लोग अग्नेय भत्तां के मन इन और झुकाते हैं। जब