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जैन और बौद्ध शास्त्रों में जैन साधुओं को सर्वत्र निग्गंथ, श्रमण अथवा मुनि कहा गया है और उनके गृहस्थ शिष्यों को श्रावक कहा गया है । दिगंबर अथवा श्वेताम्बर जैसे सांप्रदायिक नामों का उल्लेख इन ग्रंथों में कहीं नहीं मिलता। श्वेताम्बर ही जैन धर्म के असली और सबसे
प्राचीन अनुयायी हैं। हम यह भी अच्छी तरह दिखला चुके हैं कि हम आज कल जिन ग्रंथों को श्वेताम्बर जैन सिद्धांत कहते है वे ही सब से प्राचीन और प्रामाणिक जैन शास्त्र हैं और महावीर के समय से लगाकर आजतक परंपरा ले श्वेताम्बरों मे उनका प्रचार चला आता है। वैसे ही हम यह ऊपर बतला चुके हैं कि श्वेताम्बर नाम का उसी समय अस्तित्व हुआ जब दिगंबर लोग जैन धर्म के असली अनुयायियों मे पृथक् हो गये और उनका एक जुदा संप्रदाय बन गया। ऐसी सूरत में यह स्वाभाविक परिणाम निकलता है कि श्वेताम्बर यद्यपि दूसरे नाम से पुकारे जाते थे महावीर के रामय के पहले भी मौजूद थे और इसलिए वे जैन धर्भ के सब से प्राचीन अनुयायी हैं। केवल सूर्ति पूजा न करने वाले श्वताम्बर ही
जैन धर्म के सचे अनुयायी हैं। श्वेताम्मरों की प्राचीनता सिद्ध करके अब हम इस बात