________________
(३२)
प्राप्त करने में बड़ी सफलता हुई है, इसलिये ऐम। कोई कारण नहीं है कि हम जैन शास्त्रों को जैन इतिहास का प्रामाणिक साधन न मानें |"
(२) ये सब बाते सिद्ध यह करती हैं कि जैन शास्त्रों के लिपिबद्ध होने के पहिले भी जैनों का धर्म मर्यादा रहित एवं अनिश्चित नहीं था कि जिसके कारण उसमें अन्य भिन्न २ धोके कारण हेरफेर होने और बिगड़नेका डर रहता, किंतु उस समय भी जैन धर्म में छोटी से छोटी बाते मी निश्चित रूप से वर्णित की गई थी। जैनों के धार्मिक सिद्धान्तों के विषय मे जो कुछ सिद्ध किया गया है, उसी प्रकार उनकी ऐतिहासिक जैन श्रुतियों के विषय में भी सिद्ध किया जा सकता है ।
( ३ ) जैन श्रुतियां एक मत होकर कहती हैं कि वल्लभि की सभा में और देवर्द्धि के सभापतित्वमें जैन सिद्धांत की व्यवस्था हुई है और कल्पसूत्र मे इस घटना का समय जो सन् ४५४ ई० है दिया है। जैन अतियों से मालूम होता है कि देवर्द्धि को यह भय हुआ कि कही सिद्धांत लुप्त न होजाय इसलिये उन्होने उसे शाखों मे लिपिबद्ध करा दिया ।
अतएव जैनों के धार्मिक साहित्य के साथ देवर्द्धि का जो संबंध है उसके विषय में हमारा मत जन साधारण के मत से कुछ भिन्न है। यह प्राय: ठीक मालूम होता है कि