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________________ २ उल्लेख अनिवार्य था । अनएव यह आवश्यक है कि पाठकगण उन बातों को उसी भाव में ग्रहण करे जिनसे प्रेरित होकर वे लिखी गई है । इस पुस्तक में मैंने संतोषजनक प्रमाणों द्वारा यह भी सिद्ध किया है कि जैन धर्म बहुत ही प्राचीन धर्म है, और तथाकथित प्राचीनतम वैदिक धर्म से भी पुराना है । बहुतेरे सज्जन मेरे इस चौंकाने वाले कथन को बड़ी हिचकिचाहट के साथ स्वीकार करेंगे, क्यों कि अब तक इस संबंध में वे कुछ और ही मानते आये हैं, फिर भी अपनी इस स्थापना के समर्थन में मैंने जो प्रमाण उपस्थित किये हैं, वे इतने अधिक और जोरदार हैं कि वे अपने आप ही पाठकों को मेरे इस कथन को बुद्धि पूर्वक मान लेने के लिये विवश कर देंगे ! इस पुस्तक को निष्पक्ष भाव से पढने पर यदि पाठकों के दिल से आम तौर पर जैन धर्म और विशेषकर स्थानक वासियों के सम्बन्ध के समस्त मिथ्या विचार दूर हो सकें तो मैं अपने को कृतकृत्य समझँगा । मेरे विद्वान् और माननीय मित्र श्री के, बी, बिडवई, बी. ए. ने इस पुस्तक में जैसी दिलचस्पी ली है और मुझे जिस प्रकार प्रोत्साहित किया है, उसके लिए मैं उनका जितना ऋणी होऊं, उतना कम है । पुस्तक की हस्तलिपि को पढ कर उन्होंने कई उपयोगी सूचनायें दी हैं, हस्तलिपि में
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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