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भएर सर्वसाधारण में जैन धर्म के सम्बन्ध में और विशेष कर श्वेताम्बर साधुमार्गी स्थानकवासी जैनियो के लामें गलत फहमी और मिथ्या विचार फैले हुए मालूम पड़ते है। म पुस्तक में जैन धर्म की तीन मुख्य शाखाओं के इतिहास पर हर तरह का पूरा प्रकाश डालने की चेष्टा की है। विश्वास पैदा कराने वाली दलीलो द्वारा मैने यह सिद्ध विगा कि स्थानकवासी जैन ही शुद्ध और मूल जैन धर्म के मोर मालिगा अनुयायी हैं। और दिगर मर और श्वेताम्बर यूनियन, मौलिक जैन धर्म की विकृत शाखाये हैं।
5 में बिलकुल विप्पा भाव से मैंने इस विषय की च , फिर भी संभव है कि ऐमा करते हुए अदनान नयी बातें कही गयी हों, जो दूसरे संप्रदाया की भावना को तुभाने वाली हों, यदि ऐसा हुआ है तो वह विवल का है क्यों कि विषय निरूपण में उनका