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(१३)'. ४ डॉक्टर राजेंद्रलाल मित्र ने योग सूत्रों की भूमिका में लिखा है कि सामवेद में एक ऐसे यति का वर्णन है कि जो बलिदान को निंद्य ममझता था।
“ ॐ पवित्रं नग्नमुपवि [ई ] प्रसामहे येषां नग्न [ नग्नये ] जातिर्थेषां वीरा ॥"
६ इसके सिवाय इसी वेद में जैनों के प्रथम और बाइसवें तीर्थंकर ऋषभदेव और अरिष्टनेमि का नाम आया है।
( के ) "ॐ नमोऽहन्तो ऋषभो ॐ ऋषभं पवित्रं पुरुहूतमध्वरं यज्ञेषु नग्नं परमं माहस स्तुतं वारं शत्रुजयं तं पशुरिंद्रमाहुरिति स्वाहा ॥” अध्याय २५, मंत्र १९ । ( ख ) ॐ रक्ष रक्ष अरिष्टनमि स्वाहा । वामदेव शान्त्यर्थमुपविधीयते सोऽस्माकं
अरिष्टनेमि स्वाहाः ॥” ७ ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है । इसके अष्टक १, अध्याय ६, वर्ग १६ में २२ वे तीर्थकर अरिष्टनेमि का नाम आया है।
"ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः स्वस्तिनस्तायो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो ब्रहस्पतिर्दधातु ।”
८ वेदव्यास के अध्याय २, पद २, सूत्र ३३ से ३६ मे जैनों के स्याद्वाद न्याय का उल्लेख पाया जाता है । इसमे