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इसके विपरीत मूर्ति पूजक साधुओं में बहुत से ऐसे है जो अपने पास द्रव्य रखते हैं तथा और भी ऐसी चीजें रग्यते हैं जिनकी ऑक्षा शास्त्रों में नहीं है। स्थानकवासी साधु अपने पास केवल वही पदार्थ रखते हैं जिनकी खास आक्षा जैन सिद्धान्त मे दी गई है।
इस प्रकार दोनों संप्रदायों के साधुओं में इतनी भिन्नताएँ हैं कि उन सबका उल्लेख करने में कई पृष्ट भर जाने की आशंका से यहां उनका स्पष्टीकरग न करते व हमारे सूक्ष पाठकों का अधिक समय नष्ट न करत संक्षेप में इतना ही लिपना पर्याप्त होगा कि यद्यपि दोनों मंप्रदाय एक ही शाग्यो को मानते हैं च एक ही तीर्थंकरो के अनुयायी होन या शवा रग्यते हैं तथापि इनके आचार विचारों में इतना भेद नजर आता है कि यदि कोई विदेगी इन्हों का अवलोक्न गरे तो उमा यही निविदा मन होगा कि ये दोनों संप्रदाय विलग मित भित्र धर्म के अनुयायी है, और इन्हें
रिसालों में किसी प्रकार ? समानता है।