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महाशय अचल होकर ऐसी उत्तम मर्यादा सदैव पालते है वो प्रसनतासे पवित्र नीतिको अनुसरके अत्र अक्षय कीर्ति स्थापित कर, परत्र अवश्य सद्गति गामी होते है. तैसे साहसीक शिरोमणिकाही 'जन्ना सार्थक है तैसा उत्तम सात्विक साहसीक सिवा स्व जन्म निष्फल है. सच्चे सर्वज्ञ पुत्र उत्तम प्रकारकी शुद्ध साहसीक वृत्ति सहितही होते है. वो लरका आश्रितोंके आधाररूप है. तिनको सिंह किशोरकी तरह साहसीकता धारण करनीही घटित है. तिनकी आबादीके उपर लरको मनुष्योंके भविष्यका आधार है. समझकर सुखसें निर्वहन हो सके तैसी महाव्रत आचरनेरूप-महा प्रतिज्ञा क" रके तिनका अखंड निर्वाह करना वोही उतम साहसीकता है. वोही महान् प्रतिज्ञाका स्वच्छंद आचरणास भंग करने के समान एकभी दूसरी कायरता है ही नहि. यह दुःख दावानलसे तैसे प्रतिज्ञाभ्रष्टकी मुति हो सकती नाहि, ऐसा समझकर-तेल पात्रधर' या राधावध साधनेवालाकी, तरह अप्रमत्त होकर सर्वज्ञ प्ररूपित तत्वरहस्य प्राप्त करके अंगीकार कीइ हुइ महा प्रतिज्ञाकों अखंड पालन करे, पो पूर्ण प्रतिज्ञावंत होकें अपना और दुसरेका निस्तार करनेमें समर्थ होता है. वोही सच्चे साहसीक गिनाये जाते है। वास्ते स्वपरको डूपानेवाली कायरता छोडकर हरएक मुमुक्षुकों उत्तम साहसीकता धारण करनी ही श्रेष्ठ है. ऐसा करनेसें सब मलीनता दूर होकर स्व पर हितद्वारा शासनोन्नति होने पावे. अहो कव प्राणी कायरता छोडकर उत्तम साहसीकता आदरेंगे और उस द्वारा स्व परकी. उन्नति साधकर कब परमानंद पद प्राप्त करेंगे !! तथास्तु.