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३१ लोकापवाद प्रवर्तन हो वैसा नहि वर्त्तना.
जिस कार्यसें लोगोमें लघुता होय वैसा कार्य विना सोचेविचारे ( अघटित कार्य ) करना नहि. जिस्से धर्मको लांछन लगेधर्मकी हीलना - निंद्या होय - शासनकी लघुता होय वैसा कार्य - भवभीरु जनकों प्राणांत तकभी नहि करना चाहियें. पूर्व महान् पुरुषोंके सद्वर्तनकी तर्फ लक्ष रखकर जिस प्रकार से अपनी या दूसरेकीयावत् जिनशासनकी उन्नति होय उस प्रकार विवेकसे वर्तना ' लोग विरुद्ध चाओ' यह सूत्रवाक्य कदापि भूल नहि जाना, जिससे सब सुख साधनेका शुभ मनोरथ कवीभी फलिभूत होय वैसे समालकर चलना सोही सर्वोत्तम है.
३२ साहसीक पना कबीभी त्यागदेना नहि.
आपत्ति के समय धैर्य, संपत्ति के समय क्षमा, सभाकी अंदर सत्य वार्ता निर्भय होकर कहनी, शत्रुनागतका सब प्रकार शक्ति मुजव संरक्षण करना और स्वार्थभोग चहाय इतना नुकसान होजाता हो तथापि अदल इन्साफ देना; इत्यादि सद्गुण सत्वरंत सज्जनोंमें स्वाभाविकही होते है. और ऐसे ही उत्तम जन धर्मके सत्य-सचे अधिकारी है. तैसे विवेकी हंसही सब मलीनता रहित निर्मल पक्ष भजकर धर्म मार्ग दीपानेके वास्ते समर्थ होते है. वैसे सत्य पुरुषोंकोंही अनंतानंत धन्यवाद है. जो सच्चा पुरुषार्थ स्फुरायकें अपना पुरुष नाम सार्थक करते है, तिनकीही उज्वल कीर्ति होती है, या निर्मल यशभी तिनकाही दिगंतमें फैलता है. जो
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