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२६ कृतघ्नता किये हुवे गुणका लोप कबीभी नहि करना.
उत्तम मनुष्य औगुनके उपर गुन करते है. मध्यम मनुष्य दूसरेने गुन कीया हो तो आप अपनी वक्त हो उस वक्त बने जितना बदला देना चाहते हैं; परंतु अधम मनुष्य तो कीये हुवे गुनको भी लोप करते हैं. ऐसी अधम वृत्तिवाले अज्ञानी अविवेकी जनसें तो कुत्तेभी अछे गिनजाते है, कि जो थोडाभी रोटीका टुकडा या खुराक खाया हो, तो खिलानेवालेको देखकर अपनी पुंछ हिलाकर खुश हो अपना कृतज्ञपना जाहिर करते हुवे उनके घरकी रात दिन चोकी करते है ऐसा समझकर कृतज्ञता आदर कर धर्मकी ल्याय'कात प्राप्त कर कुछभी धर्म आराधना करके स्व-मानवपना सार्थक करना. अन्यथा मातुश्री की कुक्षीकों धिःकार पात्र बनाकर -श-रमींदी बनाकर भूमिकों केवल भारभूत होने जैसा है. समझ रखना कि, कृतज्ञ विविकीरत्नोंकीही माता रत्नकुक्षी कहलाती है. ऐसा न्यायका रहस्य समझकर स्वपर हितकारी विवेक धारण करनेका
यत्न करना.
२७ सद्गुणीकों देखकर प्रसन्न होना.
वो प्रमोद या मुदिता भाव कहाजाता है. चंद्रकों देखकर चकोर जैसें खुशी होता है, और मेघगर्जना सुनकर मयूर जैसें ना चता है तैसें सद्गुणीके दर्शन मात्र भव्यचकोरको
हर्ष - प्रकर्ष