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होवे तोभी गुणी गुरुका आडंबर रचकर पापी विषयादि प्रमादके 'परवंशपनेसें भोले लोगोंको ठगलेथे, उन्के जैसा एकभी विश्वासबात नहीं हैं. भोले भी जानते है कि अपन गुरुकी भक्ति करके गुरुका शरण लेकर यह भवजल तिर जाएंगे, लेकिन पत्थरकी नावके मुवाफिक अनेक दोषोंसें दृषित है तो भी मिथ्या महत्वताको इच्छनेवाले दंभी कुगुरु आपकों और परीक्षा रहित अंधप्रवृत्ति करनेवाले आपके भोले आश्रित शिष्य भोंकी, भवसमुद्रमें डूबा देते हैं. और ऐसे स्वपरको महा दुःख उपाधिमें हाथसें डाल देते है, जो ऐसा कार्य करते है वो धर्मग कुगुरुओंको यह संसारचक्रमें परिभ्रमण करनेके समय महा कट फलका स्वादानुभव लेना पड़ता है. इस वास्तही श्री सर्वज्ञ देवने धर्मगुरुओंको रहनी कहनी बरोबर रखकर निर्देभतासें वतने काही फरमान कीया है. अपन प्रकटतासें देख सकते है कि कितनेक कुमतिके फंदमें फंसे हुवे और विषय चासनासे पूरित हुवे हो; तदपि धर्मगुरुका डॉल-बांग धारण कर केवल अपना तुच्छ स्वार्थ सिद्ध करने के लिये अनेक प्रपंच जाल गुंथन कर और अनेक कुतर्क करके सत्य और हितकर सर्वज्ञके उपदेशकोभी छुपाते हैं इस तरहसे आप धर्मगुरुही धर्मठग बनकर भोले हिरन साहश केवल काद्रियके लोलपी आंखे मींचकर हाजी हा करनेवाले अपने आश्रित भोले भक्तोंको ठगकर स्वपरका विगाइते हैं. सो विवेकी हंस कैसे सहन कर सकें ? दिन प्रतिदिन वो पापी चे५ पसार कर दुनियाको पायमाल करते है, उसे वो