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लिये निकाचित् कर्मबंधकर निदक नरकादि अधोगतिमही जाते है. निंदा, चाडी, परद्रोह तथा असत्यकलंक चडानेवाले वा हिंसा, असत्यभाषण, परद्रव्यहरण और परस्त्री गमनादि अनीति वा अनाचार करनेवाले, भोपांध, रागांध होनेवाले जो जो बूरे हाल होनेका शास्त्रकारोंने वर्णन कीया है वो, तथा उन संबंधी हितबुद्धिस जो कुछ कहना वो निंदा नहि कही जाती है, मगर हिनबुद्धि विगर द्वषसे पिरायेकी बातें कर दिल दुभाना सो निंदा कहि जाती हैं. और यह निंद्य हैं, इसलिये नाम लेकर पिरायेकी वदी करनेका मिथ्या प्रयास नहि करना. कवी निंदा करनेका दिल - हो जाय तो सच्चे और अपनेही दोषोंकी निंदा करनी कि जिसे
कुछमी दोपमुक्त होता है. केवल दोषोंकीभी निंदा करनेसें कुछ __ कार्य सिद्धि नहि होती, तोभी परनिंदासें स्वनिंदा बहोतही अच्छी है.
२३ बहोत नहि हंसना. बहोत हंसना सो भी अहितकारी है. वहीत हंसनेसें परिणाम में रोनेका प्रसंग आता हैं. हंसनेकी बूरी आदत मनुष्यकों बडी आपत्तिमें डालनी हैं. बहोत पकत हंसनेकी आदत होनेसे मनुष्य कारणमें या बिगर कारण भी सता है और वैसा करनेसें राज्यसभा या अंतःपुरम हंसनेवालेकी बडी स्वारी होती है, इसिालये वो बूरी आदत प्रयत्न करके छोडदेनीही योग्य हैं. कहनावतभी है कि 'हसी विपत्तिका मूल हैं.' हाथसें करके जीको जोखममें डालना