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वोक्त सद्भावनाके जोर से प्रकटते है; पारो मोक्षार्थिजनोंकों उपर कही गई भावनायें धारनेके लिये अवश्य प्रयत्न करना योग्य है. सर्वज्ञ कथित तत्त्व रसिककों ये शुभ भावनाओं सहजही प्रकट होती है।
प्रकरण पोथा.
सदुपदेश सार. १ जीवदया (जयणा) हमेशां पालनी चाहिये.
चलते, बैठते, उठतें, सोते, खाने, पीतें या पोलते यानि यह हर' एक प्रसंगमें प्रमादसें पिराये प्राण जोखममें नहि आ जावे वैसा उपयोग रखकर चलना. सूक्ष्म जंतुओंका जिस्से संहार होजाय, वैसा खजुरीका झाडु वगैरः कचरा निकालने के लिये कवीभी परासमें नहि लेना. पानीभी छानकर पीना. छाना हुवा जलभी ज्यादा नहि ढोलना. जीवदयाके खातिर रात्रिभोजन नहि करना. कंदमूल भक्षण वजित करदेना. जीवदयाके खातिर जहां तहां अग्नि नहि सिलगानेका ध्यान रखना; क्योंकि अपने प्राणहीके समान सब जीवांका अपने अपने प्राण वल्लभ हैं, तो उन्हक प्रिय प्राणाकी कीमत बूझ स्वच्छंदपना छोडकर जैसे उन्हका वचाव हो सके वैसे कार्य करने में मथन करना, और याद रखना कि सर्व अभक्ष्य मध मांसादिके भक्षणसे क्षणिक रसकी लालचके लीये असंख्य जीवोंके कीमती जानकी स्वारी होती है, उन्ह नाहक संहारसे