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३०१ करक ८-९-१० ) तथा तीन चौमासीके अस्वाध्याय दिनकी अंदर उपदेशमालादिक गिनी पढी जाती है. --- ४२ स्थापनाचार्यके समीपम प्रतिक्रमण करनेके समय प्रथम स्थापनाचार्यकों और पीछे द्धानुक्रमसें दो चार या छः मुनियोंकों क्षामणा कि जाय दूसरे मुनि न होवै तो मात्र स्थापनाचार्य काही क्षामणा कि जावै. - ४३ मेथी आंविलम-कल्प सकै मेथी द्विदल है, और द्विदल विलमें कल्पता है. .
४४ सामायिक लेकर स्वाध्यायके आदेश मांगलीए वाद ख. भासण दे के इच्छाकारण संदिसह भगवान् मुहपत्ति पडिले हु ?' असा कहकर आदेशमांग मुंहपत्ति पडिलेहके पचखाण करना.
४५ साध्वी खडी उंची वांचना लेवे. ४६ कुल (कोटी ) १०८ पुरुपसें जानना. ४७ इस अवसर्पिणीमें ७ अभव्य प्रसिद्धि में आये हैं.
४८ म्लेच्छ और मच्छीमारादि श्रावक हुए होवै तो उनकों जिनमतिमा पूजनमें लाभ ही है. यदि शरीर और वखादिककी शुद्धता होवे तो प्रतिमाजीकी पूजा करनेमें मना है असा लेख मु. में नहीं आया ! ___४९ शिष्य अच्छी तरह चारित्र न पाल सके; तदपि गुरू मोहस करके उनको योग्य शिक्षा वचन न कहें तो गुरुको पाप लगै. अन्यथा न लगे.
५० साध्वीको वंदना करनेके परुत श्रावक ' अशुजाणह