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२३९ उमती होवै उस प्रकार आप साहव समित समयोचित सत् पथमें आपके आश्रय लेनेकों आये हुवे और आनेवाले मुग्ध हिरन जैसे श्रावकवर्गका पालन पोषण कर अनेक भव्य सत्वो के द्रव्य और भाव प्राण बचाकर गोप, महागोप, नियमिक आदि विरुदको सार्थक फरोंगे, तभी ही इस वरूतमें पवित्र जैनशासनकी लाज रहेगी. शासनकी लाज बहानी सो आपकेही हाथमें है. मानपानकी लखटूट छोडकर केवल पारमार्थिक बुद्धिस शुद्ध वीतराग मार्ग स्वयं सेवन कर दूसरे आश्रितोंकों भी सेवन करनेकी फर्न पाउनेसेही लाज बढ सकेगी. परंतु जैसा चलता है वैसाही चलने दे, जैसा भावी होगा पैसा बनेगा वगैरः सत्य मार्ग सेवन करने से विनकारी विचारोंसे तो मायः अपनी ऐसी शोचनीय दशा हो गई है, ऐसी प्रत्यक्ष मालुम होती हुइ अपनी अवदशा दूर जाय और शुभदशा जास्त होवै वैसा भगीरथ यत्न सेवन करनेकी खास जरुरत है; तथापि जब अपन केवल प्रमादके तावेदार बनकर कुछ भी सानुकूल उधम नहीं करेंगे तो, कहिये साधो! अपनी शुभदशा किस तरह जाटत हो सकेगी? एक थोडासा काट निकालनेमें भी का सहन करना पड़ता है, तो यह तो दीर्घकाल के महा प्रमादयोगसे लिपटा हुवा जबरदस्त काट दूर करना ये फक्त पातही करनेसे नहीं बन सकेगा. ये कुछ लड़कों के खेल समान संहजहीम बन सके वैसा काम नहीं है. जब लोगसंज्ञा छोडकर लोकोत्तर शैली धारन करके राजहंसकी तरह उत्तम नीतिद्वारा सतत शुभा