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औसा उपदेश देखें और गृहस्थ-श्रावक उन महात्माओको मन प्रसन रखनेके वास्ते उत्सव महोत्सव कर एकठो अच्छा आतीभोजन.५ कलस चढाकर अपने जन्म या द्रव्यका सार्थक हुवा मानते हैं यह कैसा आश्चर्य है ! तथापि अपन वैसे भाग्यशाली महात्मा और श्रावकोंकों शांतिसे ही कहेंगे कि, भाइओ ! जब अपने बहुतसे जनी भाइ भागनी या कुटुंबी जनोंकी बहुत बारीक स्थिति आ गई है, उनकों खाने पीनेके लिये भी पडी हैरानी-परेसानी हो रही है, मुंखके मारे विचारे धर्मसाधनभी नहीं कर सकते है, तब अपन क्या अपने स्वामीभाइयोंका दुःख दिलमें धरना और वैसा करके यथाशक्ति उचित करना करांना योग्य नहीं है ? अभी जैनमात्रने अपना अपना कर्तव्य. समझकर अवश्य दुःखी जैनोंकों दाद दैनी योग्य है. ये आप लोग
जानतही होगे; तदपी परभव योग्य सबल साधन साथ लेनेके वास्ते - परम पवित्र परमात्माप्रणीत प्रवचनको उत्कृष्ट भावसें अनुसरनेमें किस लिये विलय होता होगा ये समझना बहुत कठीन हो पडता है, वो आप हमको समझानेके वास्ते तथा तद्वत् उचित विवेक सें चलकर संतोप देनेके वास्ते जितना बन सके उतना करना ने भूल जाओगे तो आपका वडा भारी उपकार अत्यंत खुसीसें मानेंगे. अरे ! समयको मान देकर चलना ये साधुजनोंका खास कर्तव्य है. परंतु इतनी इतनी नम्रतासे विज्ञप्ति करने परभी फक्त मानपानकी लखर्टमें गिर कर मुग्ध हिरनके समान आज कल के प्रायः