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__ चूकना. धर्मकार्यमें पिलप-प्रतिबंध-प्रमाद करना योग्य नहीं.
क्योंकि कहा है कि-" श्रेयांसि बहु विनानि." वास्ते जो कुछ शुभ कार्य आत्मकल्याणके निमित्त करना होय सो तुरंत कर लो. कल करने का इरादा रख्खा होवे सो आजही कर डालो, क्योंकि कलकों कालका भय है. जो कभी किसी भाग्ययोगसें ऐसा शुभ अध्यवसाय हुवा तो उसको सार्थक करनेके वास्ते एक क्षणभरभी प्रमाद करना लायक नहीं है. क्योकि कालकी गति गहन है. सो छाउं के बहानेसें. तुमारा छल देखता फिरता है; पास्ते उनका विश्वास करना योग्य नहीं है. यह प्रस्तुत समयोचित सूचनाको
अनादर न करते उन द्वारा बन सके उतना लाभ हाथ करने में __ चूक न जाना चाहिय. सुज्ञेषु किंबहुना ?
१२ अहो ! आजकल श्रीमंत लोग भी कैसे मुग्ध बन गये है कि, सर्वज्ञ भाषित शास्त्रानुसारसे तपासनेसें अपनको प्राप्त भइ हुई लक्ष्मी पूर्वमें किये हुए सुकृत्य-सुपात्रदानादिके ही योग से मिली है, और उदार दिलसें अबी भी वो प्राप्त भइ हुई लक्ष्मीका विवेकद्वारा व्यय करनेसे ही उसका सार्थक्य तथा भवातरमें म- . हान् लाभ होय वैसा है; तथापि मुग्ध तवंगर लोग केवल मोहनससें मशगुल रहकर अपन स्वच्छंदी नाद मुजब वर्तन चलाये जाते हैं वो किसी तरहसें प्रशंसापात्र गिनाया जा वैसा नहीं हैं. क्यों कि शास्त्रकारोंका तो एसाही फरमान है कि-"आणाजुत्तो धागो"-श्री सर्वज्ञ प्रभुके हुकम.मुजव किया हुवा