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सच्छंदता छोड स्वपरका हित होवै वैसा मार्ग सेवन करना यही शासन के उदयका सत्य मार्ग है. - १० आजकल विवेककी न्यूनतासें मावाप बहुत करके बुरे या झूठे व्हेमास भरे हुवे तथा पाधक रीति रिवाजोको बिलगे हुवे भालुम होते हैं, उन्होंको सुधारनेका काम बडा कठीन है; परंतु नई पैदा होती हुइ मजा-जैन बालकोंके और युवकवर्गक वास्ते धर्मशिक्षण-नीति,-न्याय-सत्य-प्रमाणिकता संबंधी अच्छी तालीम देनमें आवे तो कम महेनतसे अच्छा सुधारा अल्प समयमही होजानेका संभव है। वास्ते हरएक जगह विचरते हुए साधु मुनीराज
और तालीम पाये हुवे विद्वान श्रावक इन संबंधी अपनी खास फर्ज सोच-समझकर चाहियें वैसा अच्छा प्रयत्न करै तो जरुर कुछना कुछ सुधारा हुवे बिगर न रहवंगा. वत्तमान समयमें कितनेक जैन युवक लेख लिखकर उच्च आशयसें जैनोंकी आधुनिक-अभीकी स्थिति सुधारनेके वास्ते कुछ महेनत करते हुवे मालुम होते हैं और असा करने में उन्होंको प्रयत्न तद्दन निष्कल होता होवे जैसा कहाणा वैसा तो नहीं है; तथापि इतना तो कहा जा सके वैसा है कि आजकल विद्वान मुनिराज या श्रावक, वडी
परके जैनभाइ, और भगिनीयोको लेख लिखकर या व्याख्यान देकर बोध करने के लिये जितना श्रम उठाते है उतना श्रम यदि संपूर्ण खतसे कोमल वयके जैन बालकोंके कोमल मगजमें पवित्र जैनतोका रहस्य बहुतही सरल-सादी भाषामें समझाने के पारो, .