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૨૦ पाया हो वो वो द्रव्य देनमें उनके पुत्रादिकका कम हक नहीं है. जब मर गये हुवे या बेभान भये हुवे मावा५ आदिकका रहेना भी उनके पुत्र पसूल कर सकते हैं, और देनाभी पेही रकमसें चुकाने है; लेकीन जो शख्स केवल स्वार्थीध हो लहना लेकर देना देनेको न चाहे वै न्याय मार्गस दूर चलने हारे है योही समझ लेना. वैसे अन्यायाचरणसे आखिर उन्होंकी बड़ी भारी स्वारी होती हैं. जैसा आहार वैसाही उद्गार ? उस न्यायसें बुद्धि मलीन हो जानेसें वै थोडेसे १०तमेंही धर्म और लक्ष्मीसे भ्रष्ट हो जाते हैं. या तो जबसे अन्यायमति धारन करक अन्याय अंगीकार किया होवै तवसें धर्म भ्रष्ट तो हो गया, और जो न्याय लक्ष्मीका वशीकरण है वो न्यायकों दूर छोडनेसें-अन्याय सेवन करनेसें तुरंतही यश लक्ष्मी आदिसें भ्रष्ट हो जाता है, और केवल दुःख अपयशका हिस्मेदार हो भषांतर में महा दुःख दावानलमें सीझता है. नरक निगोदादिकमें बहुत भव भटकता है. यावत् दुर्लभ बोधी हो अनंत दुःख पाता है. ऐसा होनेसे हे सुज्ञमित्रो
और वान्यो ! जागृत हो और सघ प्रमाद दूर कर ऐसे अनर्थ से मुक्त हो जाओ और दूसरों को मुक्त होजानेका उपदेश दिया करो.
श्री जैन श्वेतांबर वर्गके पूज्य गुनीराज तथा विषयी
श्रावकोंको अति अगसकी सूचनायें. प्रिय महाशय गण! आप दीर्धानुभवसें जानतेही हो कि