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लेनी, खामी अदत्त-वस्तु के मालिकका हुकम मिलाये विगर वो वस्तु न लेनी; और जीवअदत्त-सचित्त या मिश्र वस्तु न लेनी यौं कि सब किसीकों अपना अपना पान प्यारा होता है, वास्ते चारों प्रकार के अदत्त तद्दन छोड देने चाहिये. ब्रह्मचर्य देव मनुष्य, तिथंच संबंधी औदारिक और पैक्रिय-मन, वचन, तनसे करना, कराना और अनुमोदनाके भेदमें अठारह प्रकारकी मैथुन क्रिडाका सर्वथा त्याग करना; परिग्रह-बाह्य और आभ्यंतर-धन पान्यादिक नाविधिका, वाह्य, और ४ कपाय, ३ वेद, ६हास्यादि, और मिथ्यात्व यौं चोदह प्रकारके अभ्यंतर परिग्रहका तद्दन त्याग करना चाहिये. मूर्छाकों ही तखमें परिग्रह कहनेसें मूर्छा ही त्यजने योग्य है. धर्मके उपकरणोंका अंदर भी मूर्छा परिग्रह रुप ही है-यानि रागद्वेष छोडकर केरल मोक्ष निमित्त दूसरी सब वासना-उमीदके सिवाय ये पांचों महावतें निर्मल तन, मन, वच. नसे पालना, दूसरे भव्यजीवोंकों पलाने के वास्ते ४४ प्रेरणा करनी
और उक्त महावतोंकी वीतराग वचनानुसार पालनेवालेकी भ. शंसा-अनुमोदना करनी, ये यह दुःख जल भरित भीम भवोदधि तिरजानका अद्भुत और सरल साधन है. उसके सिवाय रात्रि भोजनका बिलकुल त्याग करना. प्रति लेखन, प्रतिक्रमण, पिंडविशुद्धि वगैरः का वरावर सावधानीसे विधिकी दरकार रखनेवाले वनकर अपनी शक्तिक अनुसार जो करना सो पूर्वोक्त पंच महाव्रतोंकी शुद्धि या पुष्टि निमित्त समझके ही करना-यानि जिस