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जीव ! अज्ञानदशास करके मोहमें फंस कर ' में और मेरा मेरा कर करके महा दुःख पाता है. निर्मल स्फटिक रत्नसमान सहज ज्ञान ज्योतिसें खुशोभित आत्मा खुदका असल स्वरूप मोह ઢાળી છાસ પૂર્વે બાર અજ્ઞાનન્ને વશ હોનેોઁ પર વસ્તુમ મેરા मेरा करके मरता है. अंतमें सभीकों छोड़कर युं ही रुखसद होना पडता है. जैसा प्रत्यक्ष देखता है तो भी मोह मदिरासे वेभान हुत्रा झूटा ममत नहीं छोड देता है, तो अंत में पराभव पाकर दुर्गति पाता है कि जहां कोई शरण भी नहीं होता.
सम्यग् ज्ञान यही मोक्षमार्ग बतलानेवाले दीपक है, यही भवादबीसें पार पहुंचानेको सच्चा संगाथी है; वास्ते अंत तक उसका संग न छोडना चाहिये. सम्यग् ज्ञान और वैराग्य ये दोनू इन भवसमुद्रको तिरने के लिये जवरदस्त जहाज हैं, वास्ते भव्य जीवोंने उनका ढालंबन करना ही दुरस्त है. गुण दोष: उचित अनुचित, हित अहित और लाभालाभको अच्छे तौर से समझनेरूप विवेक उस अंतःकरणमें प्रकाश करने वाला अभिनव सूर्य है, और उसके प्राप्त होनेसेंही सब सुख प्राप्त होते हैं, उसे स्थिरता, समता और त्यागादिक उत्तम गुण प्रकट होते हैं; सच्ची तपास करनेसे तो यह आत्माही खुद गुण रत्नोंका पैदा 'करंदा दरियाव है गुणमय ही है; लेकिन वो सभी विवेकद्वारा जानकर अंगिकार किया जा सकता है और उसके बिगर गुणोंकों हाथ करना चाहे वो तो धुर्वकोही हाथमें पकड़ने जैसा प्रकार है
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