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लोगोकोभी यह बातको समझ देनी ही लाभदायक है. सच पूंछो तो अपने अविषकका फल अपनेकोही मुक्तना पडता है. पैसेके लोभसे पाणी कितनेही अनर्थ करते हैं, और पैसे मिलाकर भी मदोन्मत्त अज्ञानी बनकर अपने स्वामीकाभी द्रोह करनेकों दौडते है। असे नीच लोगोंका पोषण करना सो एक जातके पापकाही पोषण करने समान है. यदि अपने भाई सलाह संपमें एकमत हो काम हाथ लेना चाहे तो समस्त सुस्थित होनेका संभव है. अलपत किसीकी योग्य आजीविका बीच पाँव देना योग्य नही, मगर साँपको दुध पिलाये जैसा दीर्घ दृष्टिसे विचार किये बिगर देनेका बिना विचारे चलाये ही जानेस अंतमं अपनाही विनाश होने का वख्त हाथ लग जाय; वास्ते जैसी पावतामें भी विवेक धारन करनेकी खास जरुरत है.
अन्यायके रस्में विवेकीजन एक पाइभी नहीं खते हैं. और. न्यायमार्गमें अपनी जितनी शक्ति होवै उतनी अमलमें ले कर द्रव्य व्यय करते है. जैनशासनमें सात क्षेत्र बतलाये है. उस शिवाय भी ज्ञानदान, पोषधशाला वगैरः धर्मकृत्योंमें उदार दिलसे द्रव्य खचनेसे जैसे तीर्थस्थान पर अतुल्य फल बांधते है, दीनदुःखीकी अनुकंपा, और पीडा पाते हुवे साधर्मीजनोंको प्रीतिपूर्वक मदद देकर सुखी करने चाहिये. धर्ममें दृढ करना ये उचितज्ञ वि
की श्रावकोंकी फर्ज है. सदाचारमें सुबह रहना, यावत् सुदर्शन शेठ या विजयशेठ और विजया शेठानीकी तरह उत्तम प्रकारका .